मुक्त आकाश हो मुक्त हो जीवन मन करे तो रुक जायें या करते रहें स्वच्छन्द विचरण खुशबु हो महक हो सुगन्ध हो या वायु अनिल पवन हर रंग में वो एक हो हर रुप में अमर लय और ताल को जोडें हम और बनायें नित नये समीकरण कभी कोई छन्द बना लो बन जाये कभी कोई गजल कभी किसी साज पे कभी किसी राग पे सजता जाये ये जीवन जैसे कोई नुतन नवयौवन सा प्रेम प्रसंग रुकते हो तुम चलते हो तुम लहरों की तरह उमडते हो तुम कभी किसी मोड पे रुकेंगे तो सोचेंगे की इतनी गति इतनी जल्दी में क्यों हो तुम