Tuesday, June 12, 2012

रुका तो है यह समय 
आज भी उसी वक्त की देहलीज़ पे 
जहाँ से पीछे  अँधेरा है 
और आगे जाने का साहस नहीं
कोड़ों से पड़ते हैं वक्त की आंधी 
और दिल मेरा दहलता भी नहीं 
किसी की मीठी बातें ज़हर लगती है 
और ज़हर लगता है संसार
क्यूँ कहते हों इसे तुम  प्यार  
अब तो बस हों रहा है व्यापार 
व्यापार भावनाओं का 
व्यापार वासनाओं का 
जखीरा है ये आशा और निराशा की 
खोखली होती प्रेम के परिभाषा की 
नहीं चाहिए मुझे पतवार 
आज अकेले ही पार जाउंगी 
लहरों का शोर होने दो 
साहिल आज खुद ही बन जाउंगी 

स्वाति सिन्हा