रुका तो है यह समय
आज भी उसी वक्त की देहलीज़ पे
जहाँ से पीछे अँधेरा है
और आगे जाने का साहस नहीं
कोड़ों से पड़ते हैं वक्त की आंधी
और दिल मेरा दहलता भी नहीं
किसी की मीठी बातें ज़हर लगती है
और ज़हर लगता है संसार
क्यूँ कहते हों इसे तुम प्यार
अब तो बस हों रहा है व्यापार
व्यापार भावनाओं का
व्यापार वासनाओं का
जखीरा है ये आशा और निराशा की
खोखली होती प्रेम के परिभाषा की
नहीं चाहिए मुझे पतवार
आज अकेले ही पार जाउंगी
लहरों का शोर होने दो
साहिल आज खुद ही बन जाउंगी
स्वाति सिन्हा