Friday, August 13, 2010

hasti mitaye baithe hain







हम अपनी हस्ती मिटाए बैठे हैं 


तेरे आने की खबर सुन के 

दिल की बस्ती सजाये बैठे हैं

चराग बुझ न जाये आने से पहले

हम घर के परदे गिराए बैठे हैं

यह जुदाई के रात जल्दी कटे 

तेरी तस्वीर को सीने से लगाये बैठे हैं 

हैं सुलगते हुए अरमान मेरे

हम सर्द आहों से उन्हें बुझाये बैठे हैं

कोई न सुन पाए खामोसी को मेरे

दिल की धड़कन में तेरी आवाज़ बसाये बैठे हैं

क्यूँ खड़े हो दूर हमसे

हम दिल के शामियाने में आपकी महफिल सजाये बैठे हैं









3 comments:

अपनीवाणी said...

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Akshitaa (Pakhi) said...

आपने तो बहुत अच्छी कविता लिखी ...बधाई.

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'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !

ABHIVYAKTI said...

thanks pakhi u liked it!!!!!!