प्रेम को परिभाषित
किसने है किया
हर दिल ने उसे
एक नया नाम है दिया
कृष्ण के लिए
प्रेम था छल
राम की थी मर्यादा
ईशा ने त्याग कर
प्रेम को दिया एक तर्क
राँझा ने प्रेम को पुकारा
लेकिन लौटा लेकर सिर्फ दर्द
सदियों से लोग कहते आये
प्रेम की कठिन है डगर
वोह प्रेमिका की बाँहों में
है एक कोमल स्पर्श
ज़माने की नजरों से छुपता
एक डर
वह आग भी है
है व्याकुल दिल की तड़प
वह शीतल पवन का झोंका
है हौले से गुदगुदाता एक स्पर्श
कई रूप हैं
कई परिभाषा
कभी अलग कभी अटल
वोह प्रेमिका के अधरों का गीत भी है
प्रेमी की चंचल मुस्कराहट
वह विरह भी है दर्द भरा
और मिलन की प्रागढ़तम प्रहार
वो जीवन है आशा से परिपूर्ण
वो है मौत की आहट
है किसने इसे परिभाषित किया
प्रेम का एहसास है
हर दिल के लिए
भिन्न भिन्न , बहुत अलग