Monday, November 15, 2010

prem ki ek asafal paribhasa



प्रेम को परिभाषित
किसने है किया
हर दिल ने उसे
एक नया नाम है दिया
कृष्ण  के लिए 
प्रेम था छल
राम की थी मर्यादा
ईशा ने त्याग कर
प्रेम को दिया एक तर्क
राँझा ने प्रेम को पुकारा
लेकिन लौटा लेकर सिर्फ दर्द
सदियों से लोग कहते आये
प्रेम की कठिन है डगर
वोह प्रेमिका की बाँहों में
है एक कोमल स्पर्श
ज़माने की नजरों से छुपता
एक डर
वह आग भी है
है व्याकुल दिल की तड़प
वह शीतल पवन का झोंका
है हौले से गुदगुदाता एक स्पर्श
कई रूप हैं 
कई परिभाषा
कभी अलग कभी अटल
वोह प्रेमिका के अधरों का गीत भी है
प्रेमी की चंचल मुस्कराहट
वह विरह भी है दर्द भरा
और मिलन की प्रागढ़तम प्रहार
वो जीवन है आशा से परिपूर्ण
वो है मौत की आहट
है किसने इसे परिभाषित किया
प्रेम का एहसास है 
हर दिल के लिए
भिन्न भिन्न , बहुत अलग

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