तुम तक कैसे पहुंचु राम
माया मोह में फँस कर
हूँ व्याकुल मैं भगवान्
ज्ञान की गगरी पहुँच से बाहर
छोटे हैं पग मेरे
भटके भटके फिरूं मैं
तुझे खोजूं निधान
वो रूप भी तेरा सत्य है
निराकार भी तु
किसको मानु किसको छोडूं
राह दिखाओ मेरे राम
घट घट के तुम हो वासी
क्यूँ खोजूं तुमको मैं काशी
तेरे रूप से आलोकित जग
और मेरे अंतर प्राण
तेरे पास है अमृत कलश
मेरे पास है प्यास
कुछ बूँदें उड़ेल दो हृदय पे
कर दो एक हृदय के तार
राम तू ज्ञान है
अज्ञानी जग सारा
तुझसे जुड़ना परम लक्ष्य
तू ही खेवनहारा
इक है गंगा इक यमुना
एक शिव एक कृष्ण का धाम
मैंने आँगन कुआँ खुदाया
पर जल क्यूँ न एक समान
ऐसे ही जग में सारे
एक साधु एक हैरान
किसी ने तुझको जान लिया
दूजा है परेशान
निर्मोही तेरा रूप प्रसिद्ध
काम और क्रोध का किया निषेध
स्त्रियों के तुम हो पुरुषोत्तम
और साधु संत हैं तेरे सानिध्य
हे राम मैं मुरख अज्ञानी
हाथ जोडून क्षमा याचूं
मुझको ज्ञान का जोत दिखा
व्याकुल हूँ में अधम प्राणी
1 comment:
andhkaar me bhi prakaash ki or le jaati abhivyakti .... thanks for writing such lines...
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