Sunday, December 26, 2010

mere raam

तुम तक कैसे पहुंचु राम
माया मोह में फँस कर
हूँ व्याकुल मैं भगवान्
ज्ञान की गगरी पहुँच से बाहर
छोटे हैं पग मेरे
भटके भटके फिरूं मैं
तुझे खोजूं निधान
वो रूप भी तेरा सत्य है
निराकार भी तु
किसको मानु किसको छोडूं
राह दिखाओ मेरे राम
घट घट के तुम हो वासी
क्यूँ खोजूं तुमको मैं काशी
तेरे रूप से आलोकित जग
और मेरे अंतर प्राण
तेरे पास है अमृत कलश
मेरे पास है प्यास
कुछ बूँदें उड़ेल दो हृदय पे
कर दो एक हृदय के तार
राम तू ज्ञान है
अज्ञानी जग सारा
तुझसे जुड़ना परम लक्ष्य
तू ही खेवनहारा
इक है गंगा इक यमुना
एक शिव एक कृष्ण का धाम
मैंने आँगन कुआँ खुदाया
पर जल क्यूँ न एक समान
ऐसे ही जग में सारे
एक साधु एक हैरान
किसी ने तुझको जान लिया
दूजा है परेशान
निर्मोही तेरा रूप प्रसिद्ध
काम और क्रोध का किया निषेध
स्त्रियों के तुम हो पुरुषोत्तम
और साधु संत हैं तेरे सानिध्य
हे राम मैं मुरख अज्ञानी
हाथ जोडून क्षमा याचूं
मुझको ज्ञान का जोत दिखा
व्याकुल हूँ में अधम प्राणी

1 comment:

Anonymous said...

andhkaar me bhi prakaash ki or le jaati abhivyakti .... thanks for writing such lines...