Monday, January 31, 2011

raaste bane rehbar ........

                        रास्ते बने रहबर !!!!!

हमने राहों के पत्थर से दोस्ती की है
पाँव के छाले बने हमराह
कोई मरहम लगाये इन पर
इसकी न रही अब कोई चाह

रहबर हैं मेरे यह चमकते आंसू
की अंधेरों में चलना अब मुश्किल  नहीं
खवाबों के अंजुमन सरक जा परे
न सोऊंगी मैं की करीब मंजिल मेरी

रास्ते पे कई राहजन मिले अभी
बोली थी सुनी सुनाई आँखें जानी  पहचानी
 राज़दार  न कोई था फिर भी मेरा
सब ने सुन रखी थी कहानी मेरी

पनाह लेती हूँ अब मैं
परिंदों में एक जगह है दिखाई 
आँखों को कर लिया बंद 
दो गज की है मंजिल ये मेरी

स्वाति सिन्हा

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