Saturday, November 01, 2008

ये जीवन


मुक्त आकाश हो मुक्त हो जीवन
मन करे तो रुक जायें
या करते रहें स्वच्छन्द विचरण
खुशबु हो महक हो सुगन्ध हो
या वायु अनिल पवन
हर रंग में वो एक हो
हर रुप में अमर
लय और ताल को जोडें हम
और बनायें नित नये समीकरण
कभी कोई छन्द बना लो
बन जाये कभी कोई गजल
कभी किसी साज पे
कभी किसी राग पे
सजता जाये ये जीवन
जैसे कोई नुतन
नवयौवन सा प्रेम प्रसंग
रुकते हो तुम चलते हो तुम
लहरों की तरह उमडते हो तुम
कभी किसी मोड पे रुकेंगे
तो सोचेंगे की इतनी
गति इतनी जल्दी में
क्यों हो तुम

5 comments:

shama said...

Bahut bhavuk rachana!

ओम पुरोहित'कागद' said...

उन्मुक्त हो जीवन सब बन्धनोँ से ऐसा संभव नहीँ इस भव मेँ लेकिन जो असंभव को संभव कर ले उसी का अस्तित्व सुरक्षित है भव मेँ।आपकी रचना के अंतर्निहित भाव अच्छे हैँ।बधाई!

Unknown said...

hallo,mam
Aapki kavita padhi man ko ander tak choo gayi ,achha lagata hai jab aap jase lekhakon se ru baru hone ka moka milta hai...

Parul kanani said...

dil se nikli hook..shbdon ki sundar bangi!

ABHIVYAKTI said...

thanks u all liked this......