मुक्त आकाश हो मुक्त हो जीवन मन करे तो रुक जायें या करते रहें स्वच्छन्द विचरण खुशबु हो महक हो सुगन्ध हो या वायु अनिल पवन हर रंग में वो एक हो हर रुप में अमर लय और ताल को जोडें हम और बनायें नित नये समीकरण कभी कोई छन्द बना लो बन जाये कभी कोई गजल कभी किसी साज पे कभी किसी राग पे सजता जाये ये जीवन जैसे कोई नुतन नवयौवन सा प्रेम प्रसंग रुकते हो तुम चलते हो तुम लहरों की तरह उमडते हो तुम कभी किसी मोड पे रुकेंगे तो सोचेंगे की इतनी गति इतनी जल्दी में क्यों हो तुम
उन्मुक्त हो जीवन सब बन्धनोँ से ऐसा संभव नहीँ इस भव मेँ लेकिन जो असंभव को संभव कर ले उसी का अस्तित्व सुरक्षित है भव मेँ।आपकी रचना के अंतर्निहित भाव अच्छे हैँ।बधाई!
5 comments:
Bahut bhavuk rachana!
उन्मुक्त हो जीवन सब बन्धनोँ से ऐसा संभव नहीँ इस भव मेँ लेकिन जो असंभव को संभव कर ले उसी का अस्तित्व सुरक्षित है भव मेँ।आपकी रचना के अंतर्निहित भाव अच्छे हैँ।बधाई!
hallo,mam
Aapki kavita padhi man ko ander tak choo gayi ,achha lagata hai jab aap jase lekhakon se ru baru hone ka moka milta hai...
dil se nikli hook..shbdon ki sundar bangi!
thanks u all liked this......
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