छंद अब मोती बन के
पन्नों पे उभरने लगे हैं
यादें अब ख़ुशी और गम के
अब रंगों में बिखरने लगे हैं
भोली सी सूरत पे लाखों अरमान
वोह हलकी सी आत जाती मुस्कान
अनजानी कल्पनाओं में ही सही
कई किस्से कहने लगे हैं
वोह दीपक जो जलता है
चाँद की तरह चमकता है
पूछे कोई उससे , कितने हैं?
पूछे कोई उससे , कितने हैं?
दीपक की तरह जो जलने लगे
माना की मुलाक़ात थोड़ी थी
मगर वोह वक़्त और हालत ऐसी ही थी
सुकून इस बात का है
किसी की धड़कने हमारे नाम से चलने लगे हैं
किसी की धड़कने हमारे नाम से चलने लगे हैं
वो आये महफ़िल में आज की शाम फिर
वक़्त गुज़रा और कब सेहर हो गयी
कहते हैं वोह की अब चलना होगा
की बस्ती में लोग अब जागने लगे हैं
स्वाति सिन्हा