ऐ बारिश इतना न बरस
की बह जाऊं मैं
तेरी बूंदों के काफिले में
खो के रह जाऊं मैं
वैसे भी मुस्किल से कट रहा
वक़्त मेरा
की वादा था उनसे मिलने का मेरा
पर तेरी बारिश ने मुझे रोक दिया
मेरे उठते कदम को टोक दिया
इस वक़्त जब तुम होते साथ
होती अपनी एक प्यार भरी मुलाकात
पर तुम न आये सारी रात
होठों पे रह गयी कितनी अनकही बात
इन बूंदों को भी मुझसे आज
कोई शिकायत हो गयी
तुम्हारे चाँद से मुखड़े का दीदार हो
इनकी भी ये हसरत रह गयी
इस मौसम में तुम जब मुझसे मिलते थे
कैसे कह दूं आज की रात
की इस भीगी बरसात में
तुमसे सारी मुलाकात याद आ गयी
स्वाति सिन्हा
2 comments:
यह कविता ही है जहां दर्द भी पगकर,.
रस बनकर शोधन मानस का करता है.
bahut sundar likhaa aapne..blessings..
वाह स्वाति जी बहुत खूब.
एक शेयर याद आ गया.
"ऐ बारिश इतना न बरस की वो आ न सके,
आने के बाद इतना बरस की वो जा न सके"
पर यहाँ तो उल्टा हो गया.बेरन बारिश ने मिलने ही न दिया
Post a Comment