Friday, October 24, 2008

ये जीन्दगी




भागती जीन्दगी दौड़ती जीन्दगी
हर कदम पर मरती जीन्दगी
जहां शाम ढले अंधेरा हो
उस मोड़ पर रुकती जीन्दगी
महानगरों की ऐसी भागम भाग
के बीच मैंने देखी पनपती जींदगी
रोशनी के बीच हंसते चहकते लोग
वहीं किसी कोने में बिलखती जीन्दगी
उंचे २ मिनार खड़े हैं
उन में रहने वाले लोग भी सर चढ़े हैं
उसी मीनार के पीछे झोपड़ी बनाती जीन्दगी
चारों तरफ रिश्तेदारों कि भीड़ है
खुशीयों में शरीक होते रिश्ते
वहीं गमों के पहाड़ से घिरी
एक रिश्ता टटोलती जिन्दगी
ये तेरे पदचाप हैं बता रही है
तेरी भी है एक जिन्दगी
य॓ तु हीं सोच ले दोनो
तरह में कौन सी है तेरी जीन्दगी

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