Saturday, May 21, 2011

तुम क्यूँ इतने आस पास रहते हो



हर जगह दिखते हो, 
मेरी किताबों में
मेरे कमरे के आईने में
मुझ में और मेरे ख्वाबों में

हर वक़्त साथ होते हो
कभी सांस बन के
कभी मिलोगे ये आस बनके
कभी मेरे हो ये विश्वास बनके

मेरी रूह बनके साथ चलते हो
चराग बन के मेरी राह में जलते हो
थामते हो मेरा हाथ हर मोड़ पे
तुम क्यूँ इतने आस पास रहते हो


Saturday, May 14, 2011

हो गयी जग से अनजानी


तुमसे रिश्ता जोड़ मैं 
हो गयी जग से अनजानी
तुम बन गए मेरे प्रीतम 
मैं तेरी प्रेम दीवानी

राह निहारूं पंथ बुहारूं
तुम दर्शन दो बिहारी 
यमुना के तट पर बैठी हूँ
राह बाटुं कब से  तिहारी 

गले लगा लो . राह दिखा दो
दुःख  और सुख की मारी हूँ
यह भवसागर पार लगा दो
की मैं मुरख अज्ञानी हूँ

तेरे श्याम रंग में कैसा जादू
की सुध बुध अपनी हारी हूँ
तुम प्रेम के बंधन में बाँध गए
जग छोड़ मैं  हो गयी तुम्हारी हूँ


Monday, May 09, 2011

तेरे नैनों से बांध गए मेरे नैन


तेरे नैनों से बांध गए मेरे नैन
अब हो गयी खबर ज़माने को 
तू है तो हर खुशी
वरना चैन कहाँ दिन रैन

तुझसे जीवन का जोत मिला
तुने धोये मन के मैल
निर्झर गिरते हैं आंसू मेरे
जीवन में एक सहारा तेरा प्रेम

ना मैंने दिन रात दीपक जलाये
न सजाई फूलों की सेज
फिर भी तुने हाथ थामा
अँधेरे में भी दिखाया रास्ता नेक

ना  मैं  तेरे  मंदिर गयी
ना हुयी काशी वृन्दावन में भेंट
तुने मुझको दर्शन दिया 
पलकें मूँद मैंने बाहें फैलाई सप्रेम

तेरे मेरे मन की निर्मल भाषा
समझे न जग के द्वेष
तुम मुझको पार लगाने आये
कभी भाई ,बंधू कभी सखा के भेष

स्वाति सिन्हा

Friday, May 06, 2011

वोह देख कर मेरी आँखों को
पूछ रहा था सौ सवाल
मैंने उसे दी चाय की प्याली
गर्म तो थी मगर फीकी थी मिठास