Saturday, May 21, 2011

तुम क्यूँ इतने आस पास रहते हो



हर जगह दिखते हो, 
मेरी किताबों में
मेरे कमरे के आईने में
मुझ में और मेरे ख्वाबों में

हर वक़्त साथ होते हो
कभी सांस बन के
कभी मिलोगे ये आस बनके
कभी मेरे हो ये विश्वास बनके

मेरी रूह बनके साथ चलते हो
चराग बन के मेरी राह में जलते हो
थामते हो मेरा हाथ हर मोड़ पे
तुम क्यूँ इतने आस पास रहते हो


2 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

इसी को प्यार कहते हैं....
बहुत सुंदर...

ABHIVYAKTI said...

Agreed