कल फिर उसपे प्यार आया
जो ख़्वाबों को दफनाता है हर पल
कल फिर उसी कब्र पे सोये
जहाँ मेरे ख्वाब दफ़न थे
वोह कातिल भी मेरे ख्वाब का एक हस्ती रखता है
बिना उसके याद की मेरे ख्वाब अधूरे हैं
जो ख़्वाबों को दफनाता है हर पल
कल फिर उसी कब्र पे सोये
जहाँ मेरे ख्वाब दफ़न थे
वोह कातिल भी मेरे ख्वाब का एक हस्ती रखता है
बिना उसके याद की मेरे ख्वाब अधूरे हैं
~ स्वाति ~
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