वोह बेल !!!!!
उस पेड़ के तने से लिपटी वो बेल
बढती चली जा रही थी
वो बेल जो कमजोर थी
जो अकेले लहरा नहीं सकती थी
वो उस ताड़ को पाकर कितनी खुश हुई
वोह जो सिर्फ एक बेल थी
पर हौसले उसने ताड़ की तरह पाए थे
जमीन पे पड़ी वो
आसमान का सपना देखती थी
सोचती थी सबसे ऊपर उठ कर
उस नीले गगन को देखना
सारे पेड़ों से ऊपर और ऊपर जाना
ऐसी ही किसी दिन उसके बेल वहाँ पहुंचे
उस ताड़ के पास
ताड़ के क़दमों में पड़ी वोह सोचती रही
काश मुझे भी ताड़ के घर जन्म मिलता
ताड़ ने आवाज़ दी
तु बेल है अकेली नहीं
इस ताड़ का सहारा तो है ही
हर ताड़ पे बेल लगती हैं
बेल ने आसमान की तरफ देखा
कोई सपना अधूरा नही होता
बेल ताड़ से लिपट गयी
वो बढती रही
ताड़ उसके कोमल स्पर्श से खुश होता
बेल उसकी सख्त तने से सहारा पाती गयी
उस दिन बेल बहुत खुश थी
वो सारे पेड़ों से ऊपर उठती चली गयी थी
अब उस आकाश को वो सीधे देख सकती है
पत्ते के जाल से ऊपर
वो बढती रही
लेकिन ताड़ के पत्ते को जैसे ही छुआ
एक झटका सा लगा
ताड़ खफा हो गया था
उसने बेल को एक झटके से अलग किया
बेल निस्तब्ध थी
क्या हुआ
अगर मेरी कोमलता तुम्हे रिझाती
तो तेरी शख्त बाहों का मैंने भी सहारा लिया
फिर ऐसी क्या खता हुयी
की खुद से मुझे जुदा किया
बेल को फिर समझ आई
क्यूँ इश्वर ने उसे कमजोर किया
थोड़ी खफा हुई बेल भी
फिर हौसला क्यूँ बेशुमार दिया
बेल ताकती रही आसमान की तरफ
सोचा ताड़ के भरोसे क्यूँ सपनों को आबाद किया
अब हौसले का क्या करें
बेल आगे बढ़ गयी
आसमान को पाना पाना
हौसले को आजमाना है
स्वाति सिन्हा
वो आये थे जो हम पे लुट जाने के लिए
राह ऐ वफ़ा में ना जाने कब किधर गए
हम तरस गए साथ निभाने के लिए
स्वाति सिन्हा