Tuesday, August 30, 2011

अजनबी मुझे तुम बहुत याद आ रहे हो !!!!


अजनबी तुम बहुत याद आ रहे हो
मेरी धडकनों के संग तुम भी गुनगुना रहे हो
बहुत मचल रहा है दिल की देखूं तुम्हे
क्यूँ मेरे दिल को इतना तड़पा रहे हो

क्यूँ लग रहा है आस पास मेरे हो
मेरी बेचैनी पे मुस्कुरा रहे हो
आ जाओगे अगले पल बाहों में मेरी
मगर न जाने क्यूँ मुझे तुम सता रहे हो

इस सुबह की अंगडाई में भी तुम हो
तकिये में छुपाती मेरी हंसी में भी तुम हो
खुश हूँ तुम्हे चुपके से याद करके
की सुबह की किरणों और खुशबू में तुम हो

अगर कहूँ मेरी तन्हाई को तुम सजाते हो
मैं उदास हूँ अगर तो मुझे हंसते हो
कोई सपना टूटा अगर मेरा कभी
अगले ही पल इन पलकों पे एक ख्वाब दे जाते हो


स्वाति सिन्हा 

Sunday, August 28, 2011

क्या यही है प्यार .......

शब् भर जाग कर चाँद निहारा 
हथेली पे कई बार तेरा नाम उकेरा 
तेरे सन्देश पढ़े कई कई बार 
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार
                          
                      सपनो में रही जब मैं खोयी 
                      बिन बात जब मैं रात भर रोई 
                      रहा मेरे हर सुबह को तेरा इन्तेज़ार 
                      हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार 

जब मीलों दूर से तेरी धडकन सुनूँ 
जब हर दुआ में तेरी खुशियाँ चुनू 
इस मौन प्यार का इश्वर को दूं आभार 
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार 

                     जब तुने कभी भी न मुझे छुआ 
                     मगर मुझे बरहा ये अनुभव हुआ 
                     इस मन और तन पे ना रहा कोई इख्तियार 
                     हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार 

मुझे किसी जवाब का इन्तेज़ार नहीं 
मेरा प्यार तेरे जवाब का तलबगार नहीं 
ये स्पर्श ये हर्ष ये इन्तेज़ार बेइख्तियार 
बयां करती है की यही है प्यार, यही है प्यार 



स्वाति सिन्हा 

Saturday, August 27, 2011

रिश्ते महज व्यापार हो गए

कभी सुना था मैंने
बीवी गले की हार
माँ बाप भार हो गए
मगर आज देखो तो
सारे रिश्ते व्यापार हो गए
अगर ना रहा मोल
माँ के अंचल का
तो शादी के बंधन भी
सामाजिक व्यवहार हो गए
दोस्ती दूर से ही अच्छी है
वरना तो निभाना दुस्वार हो गए
कोरे कागज पे लिखते थे नाम तेरा
आज उसी कागज पे रिश्ते निसार हो गए

स्वाति सिन्हा 

Monday, August 22, 2011

kayi kisse ab bhi baaki hain


काफिला दूर से चलके आया है मगर मंजिल अभी बाकी है 
कोई कह दे मेरे दोस्त से की दोस्ती का भरम अभी बाकी है 

पढते रहे तेरी आँखों में झलकते हर बात का मतलब
मगर  कैसे कहें किताब में कई और पन्ने अभी बाकी हैं 

तेरी बातों की धुन में गुज़र होती आज कल 
आज फिर दिन तो  गुज़रा मगर रात अभी बाकी है 

चौखट पे सजी है आज फिर उस याद की रंगोली
मिटती क्यूँ  नहीं ये रंग या तेरी याद अब भी बाकी है 

सुनती हूँ मैं रोज ही कई किस्से बहार से 
खुश हूँ फिजाओं में तेरी महक अब भी बाकी है 

इत्र की शीशी सा है तेरा वजूद की कैसे जुदा करूँ 
बिखरा तो टूट कर मगर  खुशबू अभी बाकी है 

फिर इन्तेज़ार रहेगा अपनी हंसी से मिलने का मुझे  
की दुःख तो सौ हैं मगर खुशी की चाह अभी बाकी  है 

स्वाति सिन्हा 
घास पे पड़ी ओस नहीं हो

धुप निकला और खो गए तुम

याद तुम्हरी किरने हैं सूरज चाँद की

दिन हो तो तुम रात हो तो तुम


स्वाति सिन्हा 

Sunday, August 21, 2011


आन बसो इस दिल में प्रीतम 
है नैनों में जैसे  छवि तुम्हारी 
अधूरा है सोलह श्रृंगार प्रीतम
जो ना पड़े नज़र तिहारी 
कैसे कहूँ की कौन हो तुम 
मधुबान में जैसे फूलों की क्यारी 
क्या अस्तित्व उस चकोर  की 
जो ना चाँद को हो प्यारी 



स्वाति सिन्हा 

Saturday, August 20, 2011


कुछ तो करो ख्याल की हिजाब में हूँ मैं
और न करो सवाल की हिजाब में हूँ मैं
तुम्हारी बातों ने ऐसा असर कर दिया
की छुपते नहीं ये गुलाल मगर हिजाब में हूँ मैं

स्वाति सिन्हा 

कितनी बातें बता गया वो पल एक पल में
हमें आइना दिखा गया वो पल एक पल में
समझाने आये कई दोस्त की भूल जा जो हुआ
कई बातें ऐसी हो जाती हैं बस एक पल में

कहती तो बात बढ जाती उस एक पल में
किसी को मैं भी रुला जाती उस एक पल में
इतना ही एहसान करदो मत कुरेदो
की जख्म नहीं भरे हैं गुज़रे हुए कल में

स्वाति सिन्हा 

Wednesday, August 17, 2011


मेरे हम नफ़स कभी इन आँखों को तेरा दीदार तो हो
हम फिर उस राह से गुजरें ,मगर कभी आँखें चार तो हो
बड़ा लुफ्त है इस खामोश से मोहोब्बत में भी हमदम
मगर फिर भी तमन्ना है कभी इज़हार तो हो

स्वाति 

Sunday, August 14, 2011


कभी तुम्हारी बात होती रही
कभी तुम्हारे  जलवों का चर्चा रहा
हम भी सुनते रहे  की कौन है वो
रात भर  जिसका महफ़िल में पहरा रहा .....

स्वाति सिन्हा 

Saturday, August 13, 2011

देख ली खुदाया हमने दुनिया ये तेरी

पत्थर में बसा तू और पथरीली ये जिंदगी




स्वाति 
हमारी ख़ामोशी को कमजोरी समझ बैठे
खुद पे कमाल का विश्वास रखते हैं
हार गए सारी जंग वो अपने दंभ से
और मुझे आइना दिखने का दम रखते हैं



स्वाति सिन्हा 

दिल में उठी है बरसों की प्यास  
आजा पिया की छिड़ गयी राग मल्हार
तुम्हें देखने की जिद्द है इस दिल में
की मिलने आई मैं करके सोलह श्रृंगार
स्वाति सिन्हा 

Thursday, August 11, 2011


उनका जिक्र करते हैं सौ बहानो से 
पूछते हैं पता चाँद और तारों से 
मिलना मिलाना कब हो तू ही बता 
हम अक्सर पूछ बैठते हैं ये बहारों से

स्वाति सिन्हा 

हमसे अनजान थी उसकी निगाहें और वोह हमारा भी था
दिल को तोडा उसने और वही दिल का सहारा भी था
दो चेहरे लिए फिरता है वो हमदम शहर में
की वफ़ा भी उसमे थी और वोह थोडा आवारा भी था
स्वाति सिन्हा 

Wednesday, August 10, 2011


बहारों के मौसम चले जाते हैं पतझड़ के निशान रह जाते हैं
जैसे उजड़े हुए दिल में यादों के टूटे मकान रह जाते हैं

स्वाति सिन्हा 

Tuesday, August 09, 2011


एक नज़र प्यार की काफी हो जहां
उस हुस्न को बेहिसाब देखना जुर्म है

शहर का हर कोना बावस्ता है खुशबू से उसके
अब तो उसका तेरे ख्याल में  आना  जुर्म है

स्वाति 

Monday, August 08, 2011

किसी की ज़ुल्फ़ जब घटा बन के छाई
होठों पे तबस्सुम बिजली की तरह लहराई
आँचल जो ढला शाम रोशन कर गया
किसी की सादगी ने आज फिर कहर ढाई

स्वाति 

कैसे कैसे लोग मिले कैसी हो गयी जिंदगी
अपनों से हैं खफा खफा गैरों  से हो गयी दोस्ती
शमा जलता है किसी और चौखट पे अब
की हमने तो कर ली अब अंधेरों से बंदगी

स्वाति सिन्हा 

Sunday, August 07, 2011

वोह बेल !!!!!

वोह बेल !!!!!

उस पेड़ के तने से लिपटी वो बेल
बढती चली जा रही थी 
वो बेल जो कमजोर थी 
जो अकेले लहरा  नहीं सकती थी 
वो उस ताड़  को पाकर कितनी खुश हुई
वोह जो सिर्फ एक बेल थी 
पर हौसले उसने ताड़ की तरह पाए थे 
जमीन पे पड़ी वो
आसमान का सपना देखती थी 
सोचती थी सबसे ऊपर उठ कर 
उस नीले गगन को देखना 
सारे पेड़ों से ऊपर और ऊपर जाना
ऐसी ही किसी दिन उसके बेल वहाँ पहुंचे 
उस ताड़ के पास 
ताड़ के क़दमों में पड़ी वोह सोचती रही 
काश मुझे भी ताड़ के घर जन्म मिलता 
ताड़  ने आवाज़ दी 
तु बेल है अकेली नहीं
इस ताड़ का सहारा तो है ही 
हर ताड़ पे बेल लगती हैं
बेल ने आसमान की तरफ देखा 
कोई सपना अधूरा नही होता
बेल ताड़ से लिपट गयी 
वो बढती रही 
ताड़ उसके कोमल स्पर्श से खुश होता
बेल उसकी सख्त तने से सहारा पाती गयी 
उस दिन बेल बहुत खुश थी 
वो सारे पेड़ों से ऊपर उठती चली गयी थी
अब उस आकाश को वो सीधे देख सकती है 
पत्ते के जाल से ऊपर 
वो बढती रही 
लेकिन ताड़ के पत्ते  को जैसे ही छुआ 
एक झटका सा लगा 
ताड़ खफा हो गया था 
उसने बेल को एक झटके से अलग किया 
बेल निस्तब्ध थी 
क्या हुआ 
अगर मेरी कोमलता तुम्हे रिझाती 
तो तेरी शख्त बाहों का मैंने भी सहारा लिया 
फिर ऐसी क्या खता  हुयी 
की खुद से मुझे जुदा किया
बेल को  फिर समझ आई 
क्यूँ इश्वर ने उसे कमजोर किया 
थोड़ी खफा हुई बेल भी
फिर हौसला क्यूँ बेशुमार दिया
बेल ताकती रही आसमान की तरफ 
सोचा ताड़ के भरोसे क्यूँ सपनों को आबाद किया
अब हौसले का क्या करें 
बेल आगे बढ़ गयी  
आसमान को पाना पाना
हौसले को आजमाना  है 

स्वाति सिन्हा 

Saturday, August 06, 2011

वो घर हमारा नहीं है
















तेरी बेवफाई से मुझको  सिकवा  नहीं है 
की मेरा ही दिल मेरे बस में नहीं है
खुशी तुमने जितनी देनी थी दे दी 
हमें तुमसे अब आरजू कुछ नहीं है

वो पहरे हटा के जो आते थे मिलने
वोह चाँद सूरज अब हमारा नहीं है 
कैसे कहें की दिल डूब सा जाता है
जो नजरों में बसा वो अक्स हमारा नहीं है 

बड़े नाज़ से बसाया था आशियाना 
कैसे कहें अब वो घर हमारा नहीं है 
 उलझी हैं कुछ यादें अब भी दरख़्त पर 
उन्हें भूल जायें वो हौसला नहीं है 

स्वाति सिन्हा 
  • ताउम्र  कम था जिनपे प्यार लुटाने के लिए
    वो आये थे जो हम पे लुट जाने के लिए
    राह ऐ वफ़ा में ना जाने कब किधर गए
    हम तरस गए साथ निभाने के लिए


    स्वाति सिन्हा 

हमने कुछ अनकही अनसुनी सी सुन ली
तेरी आँखों की चुप्पी.. फीकी हंसी में सुन ली
अब जाते हैं कदम बड़े सुस्त होकर
हमने जो गर्म चाय बिना चीनी के चुन ली !!!!
स्वाति सिन्हा


क्यूँ नींद सी आती है ,तुम नहीं आते
जागती आँखों में तेरी याद सताती है
तुम नहीं आते
मेरे ख्यालों की दुनिया में सारे रंग तुम्हारे
और बेरंग सपने आते हैं... तुम नहीं आते


स्वाति सिन्हा 

Wednesday, August 03, 2011

तू मुझको आजमाने की जिद में है
हम तुझको भुलाने की जिद में 
देखते हैं मंजिल पे जो पहुंचा दे  
ऐसा जोश किसके दिल में है 

स्वाति 

Monday, August 01, 2011

बाजार है ये दुनिया यहां हर चीज़ बिक जाती है
दिल बिक जाता है ज़मीर बिक जाती है
हिसाब न करो अपने रंजो गम का मेरे दोस्त
की बदनसीबों की दुनिया है तकदीर बिक जाती है



स्वाति सिन्हा