काफिला दूर से चलके आया है मगर मंजिल अभी बाकी है
कोई कह दे मेरे दोस्त से की दोस्ती का भरम अभी बाकी है
पढते रहे तेरी आँखों में झलकते हर बात का मतलब
मगर कैसे कहें किताब में कई और पन्ने अभी बाकी हैं
तेरी बातों की धुन में गुज़र होती आज कल
आज फिर दिन तो गुज़रा मगर रात अभी बाकी है
चौखट पे सजी है आज फिर उस याद की रंगोली
मिटती क्यूँ नहीं ये रंग या तेरी याद अब भी बाकी है
सुनती हूँ मैं रोज ही कई किस्से बहार से
खुश हूँ फिजाओं में तेरी महक अब भी बाकी है
इत्र की शीशी सा है तेरा वजूद की कैसे जुदा करूँ
बिखरा तो टूट कर मगर खुशबू अभी बाकी है
फिर इन्तेज़ार रहेगा अपनी हंसी से मिलने का मुझे
की दुःख तो सौ हैं मगर खुशी की चाह अभी बाकी है
स्वाति सिन्हा
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