Monday, August 22, 2011

kayi kisse ab bhi baaki hain


काफिला दूर से चलके आया है मगर मंजिल अभी बाकी है 
कोई कह दे मेरे दोस्त से की दोस्ती का भरम अभी बाकी है 

पढते रहे तेरी आँखों में झलकते हर बात का मतलब
मगर  कैसे कहें किताब में कई और पन्ने अभी बाकी हैं 

तेरी बातों की धुन में गुज़र होती आज कल 
आज फिर दिन तो  गुज़रा मगर रात अभी बाकी है 

चौखट पे सजी है आज फिर उस याद की रंगोली
मिटती क्यूँ  नहीं ये रंग या तेरी याद अब भी बाकी है 

सुनती हूँ मैं रोज ही कई किस्से बहार से 
खुश हूँ फिजाओं में तेरी महक अब भी बाकी है 

इत्र की शीशी सा है तेरा वजूद की कैसे जुदा करूँ 
बिखरा तो टूट कर मगर  खुशबू अभी बाकी है 

फिर इन्तेज़ार रहेगा अपनी हंसी से मिलने का मुझे  
की दुःख तो सौ हैं मगर खुशी की चाह अभी बाकी  है 

स्वाति सिन्हा 

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