की मेरा ही दिल मेरे बस में नहीं है
खुशी तुमने जितनी देनी थी दे दी
हमें तुमसे अब आरजू कुछ नहीं है
वो पहरे हटा के जो आते थे मिलने
वोह चाँद सूरज अब हमारा नहीं है
कैसे कहें की दिल डूब सा जाता है
जो नजरों में बसा वो अक्स हमारा नहीं है
बड़े नाज़ से बसाया था आशियाना
कैसे कहें अब वो घर हमारा नहीं है
उलझी हैं कुछ यादें अब भी दरख़्त पर
उन्हें भूल जायें वो हौसला नहीं है
स्वाति सिन्हा
No comments:
Post a Comment