Saturday, August 06, 2011

वो घर हमारा नहीं है
















तेरी बेवफाई से मुझको  सिकवा  नहीं है 
की मेरा ही दिल मेरे बस में नहीं है
खुशी तुमने जितनी देनी थी दे दी 
हमें तुमसे अब आरजू कुछ नहीं है

वो पहरे हटा के जो आते थे मिलने
वोह चाँद सूरज अब हमारा नहीं है 
कैसे कहें की दिल डूब सा जाता है
जो नजरों में बसा वो अक्स हमारा नहीं है 

बड़े नाज़ से बसाया था आशियाना 
कैसे कहें अब वो घर हमारा नहीं है 
 उलझी हैं कुछ यादें अब भी दरख़्त पर 
उन्हें भूल जायें वो हौसला नहीं है 

स्वाति सिन्हा 

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