Monday, August 08, 2011

किसी की ज़ुल्फ़ जब घटा बन के छाई
होठों पे तबस्सुम बिजली की तरह लहराई
आँचल जो ढला शाम रोशन कर गया
किसी की सादगी ने आज फिर कहर ढाई

स्वाति 

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