Saturday, August 27, 2011

रिश्ते महज व्यापार हो गए

कभी सुना था मैंने
बीवी गले की हार
माँ बाप भार हो गए
मगर आज देखो तो
सारे रिश्ते व्यापार हो गए
अगर ना रहा मोल
माँ के अंचल का
तो शादी के बंधन भी
सामाजिक व्यवहार हो गए
दोस्ती दूर से ही अच्छी है
वरना तो निभाना दुस्वार हो गए
कोरे कागज पे लिखते थे नाम तेरा
आज उसी कागज पे रिश्ते निसार हो गए

स्वाति सिन्हा 

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

ab rishte shatranj kee gotiyaan hain , alag alag chaal , alag alag daav

ABHIVYAKTI said...

thanks Ma'am for such a beautiful dimension to my lines......
Its really a beautiful poetic journey ..together with U