हथेली पे कई बार तेरा नाम उकेरा
तेरे सन्देश पढ़े कई कई बार
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार
सपनो में रही जब मैं खोयी
बिन बात जब मैं रात भर रोई
रहा मेरे हर सुबह को तेरा इन्तेज़ार
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार
जब मीलों दूर से तेरी धडकन सुनूँ
जब हर दुआ में तेरी खुशियाँ चुनू
इस मौन प्यार का इश्वर को दूं आभार
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार
जब तुने कभी भी न मुझे छुआ
मगर मुझे बरहा ये अनुभव हुआ
इस मन और तन पे ना रहा कोई इख्तियार
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार
मुझे किसी जवाब का इन्तेज़ार नहीं
मेरा प्यार तेरे जवाब का तलबगार नहीं
ये स्पर्श ये हर्ष ये इन्तेज़ार बेइख्तियार
बयां करती है की यही है प्यार, यही है प्यार
स्वाति सिन्हा
2 comments:
जब तुने कभी भी न मुझे छुआ
मगर मुझे बरहा ये अनुभव हुआ
इस मन और तन पे ना रहा कोई इख्तियार
हमदम क्या इसी को कहते हैं प्यार ... bahut badhiyaa
thanks Ma'am.....
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